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देवता: मरुतः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

सांत॑पना इ॒दं ह॒विर्मरु॑त॒स्तज्जु॑जुष्टन। यु॒ष्माको॒ती रि॑शादसः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sāṁtapanā idaṁ havir marutas taj jujuṣṭana | yuṣmākotī riśādasaḥ ||

पद पाठ

सान्ऽत॑पनाः। इ॒दम्। ह॒विः। मरु॑तः। तत्। जु॒जु॒ष्ट॒न॒। यु॒ष्माक॑। ऊ॒ती। रि॒शा॒द॒सः॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:59» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो (सान्तपनाः) उत्तम प्रकार तपन में हुए (मरुतः) मनुष्यो ! आप (तत्) उस (इदम्) इस (हविः) देने योग्य अन्न आदि पदार्थ की (जुजुष्टन) सेवा करिये, हे (रिशादसः) हिंसा करनेवालों के हिंसक ! (युष्माक) आप लोगों की (ऊती) जो रक्षण आदि क्रिया उससे आप सेवन करें अर्थात् परोपकार करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! आप लोग सबका रक्षण करके ग्रहण करने योग्य को ग्रहण कराइये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसस्सान्तपना मरुतो ! यूयं तदिदं हविर्जुजुष्टन, हे रिशादसः ! युष्माकोती जुजुष्टन ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सान्तपनाः) सन्तपने भवाः शत्रूणां सन्तापकराः (इदम्) (हविः) दातुमर्हमन्नादिकम् (मरुतः) मानवाः (तत्) (जुजुष्टन) सेवध्वम् (युष्माक) अत्र वा छन्दसीति मलोपः। (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया (रिशादसः) हिंसकानां हिंसकाः ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! भवन्तः सर्वेषां रक्षणं विधाय ग्रहीतव्यं ग्राहयन्तु ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! तुम्ही सर्वांचे रक्षण करून स्वीकारण्यायोग्य गोष्टींचा स्वीकार करवा. ॥ ९ ॥